Small Business Ideas: सिर्फ 15 हजार रुपये में शुरू करें बेबी कॉर्न का बिजनेस, लाखों कमाएं, जानिए कैसे करें शुरू

Small Business Ideas: आज के समय भारत में कृषि क्षेत्र में व्यापक विस्तार देखा जा रहा है। आजकल हर कोई कमाई के क्षेत्र में अग्रसर होने की सोच रहा है। यदि आप खेती के माध्यम से अच्छी कमाई करना चाहते हैं, तो आज हम आपको एक ऐसी फसल के बारे में बता रहे हैं, जिसे आप साल में 3-4 बार उगा सकते हैं। हम बात कर रहे हैं “बेबी कॉर्न” (Baby Corn) की फसल के बारे में। बेबी कॉर्न में कई पोषक तत्व मौजूद होते हैं, और इसलिए शहरों में इसकी बड़ी मांग होती है। इसकी मांग फाइव स्टार होटलों, पिज्जा चेन, पास्ता चेन, रेस्टोरेंट्स आदि में भी बहुत अधिक रहती है।

आज के समय मार्केट में बेबी कॉर्न बहुत ज्यादा डिमांड में है। बेबी कॉर्न पोषक तत्वों से भरपूर है जिसे स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है। यह मक्का परिवार से संबंधित होता है। बेबी कॉर्न को अनेक तरह के व्यंजनों में शामिल किया जाता है। इसलिए, शहरों के छोटे और बड़े रेस्टोरेंटों में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है।

भारत में, गेहूं और चावल के बाद मक्के की खेती सबसे अधिक की जाती है। कई उत्तरी भारतीय क्षेत्रों में किसानों ने इसे उगाने के सफल प्रयास किए हैं और इससे प्रति वर्ष लाखों रुपये की कमाई की जा रही है। आइये आपको बताते है की “बेबी कॉर्न” (Baby Corn) की खेती कैसे की जाती है (How to do Baby Corn Farming) और इस खेती से कितना मुनाफा (Profit in Baby Corn Farming) कमाया जा सकता है?

45-50 में फसल होती है तैयार

बेबी कॉर्न की खेती साल भर की जाती है। मक्के के अपरिपक्व भुट्टे को बेबी कॉर्न कहा जाता है। इसकी उच्चतम गुणवत्ता वाली अवस्था 1 से 3 सेंटीमीटर लंबी सिल्क और सिल्क आने के 1-3 दिनों के बीच होती है। मक्के की फसल को साल में 3-4 बार उगाया जा सकता है। इसके पूरी तरह से तैयार होने में 45 से 50 दिन का समय लगता है। बेबी कॉर्न में कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, प्रोटीन और विटामिन होते हैं। इसे कच्चा या पकाकर दोनों रूप में खाया जा सकता है।

बेबी कॉर्न फसल में लागत

बेबी कॉर्न की खेती के लिए एक एकड़ जमीन पर लगभग 15,000 रुपये का खर्च आता है। इसके बावजूद, इससे एक लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है। किसान एक वर्ष में 4 बार फसल उगा कर आसानी से 4 लाख रुपये तक कमा सकते हैं। हालांकि, इसकी बिक्री के लिए अभी तक कोई सुचारू आपूर्ति श्रृंखला नहीं है। इसलिए किसानों को इसे बेचने में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। समय के साथ, इसकी मांग तेजी से बढ़ने की संभावना है। इससे खेती करने वाले किसानों को बहुतायती लाभ हो सकता है।

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